भूला हूँ कब तुझे...
भूला हूँ कब तुझे कि आज याद करूँ मैं।
सब कुछ दिया है तूने, क्या फ़रियाद करूँ मैं।
करना तो करम इतना कि इन्सान बनूँ मैं।
दुनिया की पीर हरने का सामान बनूँ मैं।
तुझ तक जो पहुँच पाये, वो पैगाम बनूँ मैं।
भाये तुझे जो ऐसा मधुर गान बनूँ मैं।
तपते हुए जहाँ में ठंडी छाँव बनूँ मैं।
सबको मिला दूँ तुझसे, वही नाव बनूँ मैं।
आमीन ... प्रेम का भाव हो ये सब अपने आप ही हो जाता है ...
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