इंकलाब
वतन में अब इंकलाब होते नहीं, क्यूँ,
दर्द की हद से गुज़रना क्या अभी बाकी है।
घुटन सीने में, आँखों में जलन, परेशान दिमाग,
इस सूरते हाल का बदलना क्यूँ अभी बाकी है।
वतन का पेट भरने वाले हैं तंगहाली में,
ख़ुदकुशी कितने किसानों की अभी बाकी है।
हम सभी बैठे हैं इन्तज़ार में किसी मसीहा के,
जगाना अंदर के मसीहा को अभी बाकी है।
कटते पेड़, गंदी नदियाँ, ज़हरीली हवा,
ज़िन्दगी में इनकी अहमियत क्या समझाना अभी बाकी है।
हौसला रख औ' किए जा यत्न सारे ,
मंज़िल का तेरे कदमों में आना अभी बाकी है।
वतन में अब इंकलाब होते नहीं, क्यूँ,
दर्द की हद से गुज़रना क्या अभी बाकी है।
घुटन सीने में, आँखों में जलन, परेशान दिमाग,
इस सूरते हाल का बदलना क्यूँ अभी बाकी है।
वतन का पेट भरने वाले हैं तंगहाली में,
ख़ुदकुशी कितने किसानों की अभी बाकी है।
हम सभी बैठे हैं इन्तज़ार में किसी मसीहा के,
जगाना अंदर के मसीहा को अभी बाकी है।
कटते पेड़, गंदी नदियाँ, ज़हरीली हवा,
ज़िन्दगी में इनकी अहमियत क्या समझाना अभी बाकी है।
हौसला रख औ' किए जा यत्न सारे ,
मंज़िल का तेरे कदमों में आना अभी बाकी है।
शानदार अभिव्यक्ति,
ReplyDeleteजारी रहिये,
बधाई।