Tuesday, August 26, 2014

कोई फिक्र नहीं

कोई फिक्र नहीं 

लाख मुश्किल हो सफ़र, कोई फ़िक्र नहीं।
सरपरस्ती में तेरी, कोई फ़िक्र नहीं।

बीते कल से सीख ले कर, हम सँवारें आज को,
आने वाला कल हो कैसा, कोई फ़िक्र नहीं।

हम ज़मीं के गर्भ में, नींव के पत्थर बनें,
दुनियाँ को न आयें नज़र, कोई फ़िक्र नहीं।

फ़िक्र हो बस फ़र्ज़ की, जिसके लिए पैदा हुए,
बाकी सब तेरी रज़ा है, कोई फ़िक्र नहीं।

पुरज़ोर इस्तेमाल करें, उसकी दी हर नेमत का,
पुरसुकूँ फिर नींद सो लें, कोई फ़िक्र नही।

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