दिल्ली में है सत्ता बदली
दिल्ली में है सत्ता बदली,
परिवर्तन की चली बयार।
लेकिन क्या कुछ बदल सकेगा,
अपने भी जीवन में यार।
परिवर्तन की चली बयार।
लेकिन क्या कुछ बदल सकेगा,
अपने भी जीवन में यार।
अच्छे दिन आने वाले हैं,
लेकिन किसके? पूछ रहा मन।
मँहगाई की सुरसा से कुछ
पॉकेट में बच पायेगा धन।
लेकिन किसके? पूछ रहा मन।
मँहगाई की सुरसा से कुछ
पॉकेट में बच पायेगा धन।
क्या बदलेगी भ्रष्ट व्यवस्था,
कम होंगे दफ़्तर के चक्कर।
बिन पैसे के फ़ाईल बढ़ेगी,
साईन करेगा उसपर अफ़सर।
कम होंगे दफ़्तर के चक्कर।
बिन पैसे के फ़ाईल बढ़ेगी,
साईन करेगा उसपर अफ़सर।
भूख, गरीबी, बेकारी से,
क्या निज़ात मिल पायेगी।
जाति धर्म से ऊपर उठकर,
भारत माँ मुसकाएगी।
क्या निज़ात मिल पायेगी।
जाति धर्म से ऊपर उठकर,
भारत माँ मुसकाएगी।
घर की बेटी निर्भय हो कर,
सड़कों पर चल पायेगी।
भारत की भूख मिटाने वालों
की बाँछें खिल पायेंगी।
सड़कों पर चल पायेगी।
भारत की भूख मिटाने वालों
की बाँछें खिल पायेंगी।
जनता क्या चाहे? केवल कुछ
बुनियादी सुविधाएँ।
बाकी सबकी अपनी किस्मत,
मेहनत और आशाएँ।
बुनियादी सुविधाएँ।
बाकी सबकी अपनी किस्मत,
मेहनत और आशाएँ।
सत्ता तक पहुँचाने वाली,
जनता है, यह याद रहे।
अपने स्वार्थ, अहं से ऊपर,
जनता की आवाज़ रहे।
जनता है, यह याद रहे।
अपने स्वार्थ, अहं से ऊपर,
जनता की आवाज़ रहे।
जनता के प्रति अपने वादे,
भूल न जाना राजा जी।
वरना इस कुर्सी की केवल,
पाँच बरस है वॉरन्टी।
भूल न जाना राजा जी।
वरना इस कुर्सी की केवल,
पाँच बरस है वॉरन्टी।
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