Wednesday, July 16, 2014

सूखा सावन

सूखा सावन

बीत रहा है सावन सूखा,
मेघ खेलते आँख मिचौनी।
गर्म हवा है तन झुलसाती,
मन उदास है, नज़रें सूनी।

आखिर खता हुई क्या हमसे,
क्यों रूठे हैं मेघ।
जंगल काट बनी मीनारें,

हवा उड़ाती रेत।
आवारा इन मेघों की अब,
कौन करे अगवानी।
बीत रहा है सावन सूखा.....

धरती में पड़ गयीं दरारें,
सूख गये सब ताल।
मँहगाई की मार पड़ी तो,
हाल हुआ बेहाल।
हाथ जोड़ कर विनती करते
मेघों से दो पानी।
बीत रहा है सावन सूखा.....

कैसे होंगे सपने पूरे,
पीले होंगे हाथ।
साहूकार खड़ा दरवाजे,
करने दो दो हाथ।
लगता है अब मर जाएगी
बिना दवाई नानी।
बीत रहा है सावन सूखा.....

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